वन अपराध में जप्त वाहन हुए राजसात – विधि, न्याय एवं मानवाधिकारों के सवालों के घेरे में वन विभाग
बैतूल – मप्र राज्य पश्चिम वन मंडल बैतूल के अंतर्गत वन परिक्षेत्राधिकारी चिचोली द्वारा वन अपराध में 17 ट्रैक्टर ट्राली जप्त किए गए
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उप वन मंडलाधिकारी चिचोली द्वारा विधि में अज्ञात प्रक्रिया अपनाकर राज्य शासन के पक्ष में वन अपराध में जप्तशुदा वाहनों को राजसात कर लिया गया, मुख्य वन संरक्षक, बैतूल वृत द्वारा राजसात की कार्यवाही को सही ठहरा दिया गया हैं। विधि, न्याय एवं मानवाधिकारों के सवाल वन विभाग की राजसात की कार्यवाही पर उठने लगे हैं, ट्रैक्टर ट्राली में वन उपज नहीं पाई गई तो राजसात की कार्यवाही कैसे?
वन परिक्षेत्राधिकारी चिचोली का मामला इस प्रकार हैं कि 16.12.2017 को आरक्षित वन क्षेत्र क्र0 1170 में बैतूल नदी में कुछ ट्रैक्टर ट्राली को रेत भरते हुए देखा गया था, वन अमले एवं सुरक्षा समीति के सदस्यों ने रास्ते में पत्थर डाल दिए जिससे वाहन आगे नहीं जा सकें सभी वाहनों को जप्त कर लिया गया, वैधानिक कार्यवाही पूरी करके वाहनों को वन परिक्षेत्राधिकारी कार्यालय में लाकर खड़ा कर दिया गया । भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 26 (1) (ज), मप्र वनोपज व्यापार विनियमन अधिनियम 1969 की धारा 05 एवं 16 तथा मप्र अभिवहन (वनोपज) नियम 2000 की धारा 3 एवं 22 के तहत वन अपराध दर्ज करके दांडिक न्यायालय, भैसदेही एवं उप वन मंडलाधिकारी, चिचोली के समक्ष राजसात की कार्यवाही हेतु पेश कर दिया गया ।
उप वन मंडलाधिकारी, चिचोली द्वारा भारतीय वन अधिनियम की धारा 52 के तहत राजसात की कार्यवाही प्रारंभ की गई, वन अपराध के दस्तावेजो में वाहनों में 2.50 घनमीटर खनिज रेत (वनोपज) का परिवहन करना बताया गया है लेकिन भौतिक सत्यापन में वाहनों में खनिज मौजूद नहीं था । प्राधिकृत अधिकारी द्वारा धारा 52 के प्रावधानों के विपरीत जाकर दांडिक न्यायालय की तरह मामलों का विचारण किया गया, गवाहों का मुख्य परीक्षण एवं प्रतिपरीक्षण स्वयं वन परिक्षेत्राधिकारी द्वारा किया गया, अंततः वाहन राजसात कर लिया गया ।
अपीलीय अधिकारी एवं मुख्य वन संरक्षक बैतूल द्वारा जप्तशुदा वाहनों में वन उपज नहीं पाई जाने के बावजूद वन विभाग के प्रवक्ता एवं डाकघर की भूमिका में आकर वाहन राजसात को सही ठहरा दिया गया ।
विधि, न्याय एवं मानवाधिकारों के सवाल उठाते हुए अधिवक्ता भारत सेन कहते हैं कि वन विधि की धारा 52 में वनोपज की जप्ति होना आवश्यक हैं तभी अपराध प्रारंभिक तौर पर दिखाई देता हैं और राजसात की कार्यवाही की जा सकती हैं, वन अपराध के प्रत्येक मामलों में वाहन राजसात की कार्यवाही करना आवश्यक नहीं हैं, कुछ परिस्थितियां एैसी भी होती हैं जिसमें राजसात की कार्यवाही को न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता हैं ।