भगवान नहीं झोलाछाप डॉक्टरों के भरोसे गांव सरकार को भी झोला छाप डॉक्टरों की योग्यता पर भरोसा – कार्यवाही के नाम पर सब शून्य
बैतूल – चिचोली में झोलाछाप डॉक्टर के इलाज से आदिवासी मासूम की मौत ने जिले की सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की बखिया उधेड़ दी है, स्वयंसेवी संगठन और गांव गांव साक्षरता की अलख जगाने का दावा भी फेल ही साबित हुआ है, वही भाजपा का हर बूथ पर अपना कार्यकर्ता होने का दावा भी खोखला साबित हो रहा है,
सत्ता संगठन और संघ की हकीकत को झोलाछाप डॉक्टर, बंगाली डॉक्टर चार चांद लगा रहे है, सत्ता ने नशे में चूर जनप्रतिनिधियो की हकीकत गांवों की स्वास्थ्य सेवाएं खुद ही बया कर रही है ।
आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले के किसी भी गांव में चले जाइये आपको ऐसे दो-चार झोलाछाप डॉक्टर जरूर मिल जाएंगे जिनके पास डिग्री भले ना हो लेकिन वे किसी प्रोफेशनल की तरह काम करते हैं और किसी एमबीबीएस डॉक्टर की माफिक पर्चा भी लिख सकते हैं. पर्चा लिखने का इनका स्टाइल तो और भी शानदार है. बिना लेटर हेड के प्लेन कागज पर वो सारी दवाएं लिख लेते हैं जो कारगर हैं. गांव के एक बीमार को बुखार आ रहा था और डॉक्टर बाबू ने उसे पैरासिटामॉल 650 और अजिथ्रोमाइसिन के साथ-साथ जिंक और विटामिन्स की गोली भी लिखी थी. ये वही दवाएं हैं जो आजकल कोरोना के आरंभिक लक्षण आने पर ली जाती है. ये डॉक्टर सोशल मीडिया और टीवी के माध्यम से खुद को अपडेट रख रहे हैं. गर्दन पर आला लगाए ये डॉक्टर आपकी धड़कन पता कर सकते हैं. थर्मामीटर से तापमान ले सके हैं और अब तो इनके पास बीपी और शुगर नापने की मशीन भी आ गई है. किसी का हाथ-पैर टूटने की स्थिति में अब शहर भागने की जरूरत नहीं है. अब गांव में आसानी से आप प्लास्टर करवा सकते हैं. ये झोलाछाप डॉक्टर छोटे-मोटे हादसे में टांका भी लगा लेते हैं और टिटनेस का इंजेक्शन लगाने में तो इन्हें जैसे महारत हासिल है ।
चिचोली, घोड़ाडोंगरी ,
भीमपूर, भैसदेही, शाहपुर में दो हजार से ज्यादा झोलाछाप डॉक्टरों के भरोसे है प्रशासन नहीं करता कार्यवाही
ये आंकड़ा आपको बड़ा लग रहा होगा लेकिन ये आदिवासी बैतूल जिले की कहानी है जहां हर गांव में झोलाछाप डॉक्टर हैं और बिना सोचे समझे इन डॉक्टरों से इलाज करना इनकी मजबूरी है। वही सरकारी चिकित्सीय सलाह के बिना दवा लेना लोगों की आदत में शुमार है ।
शायद यही वजह कि सबसे ज्याद पैरासिटामॉल और दर्द निवारण की गोलियां इंजेक्शन इन्ही गांवो बिकता है, कम पढ़ा लिखा आदमी भी आपको 5-10 अंग्रेजी दवाओं के नाम और उनके फायदे बता देगा, एक अनुमान के मुताबिक इन पांच ब्लाकों दो हजार से ज्यादा झोला छाप डॉक्टर हैं, जो लंबे समय से ग्रामीण चिकित्सक के रूप में काम कर रहे हैं ।
इन आदिवासी विकास खण्ड के गांवों में इन्हीं चिकित्सकों के भरोसे लोग अपना इलाज करा रहे हैं।किसी गंभीर बीमारी की स्थिति में ही ग्रामीण शहरों का रुख करते हैं. आपके मन में ये सवाल जरूर आ रहा होगा कि ये झोलाछाप डॉक्टर होते कौन हैं? इनमें ज्यादातर ऐसे लोग हैं जिन्होंने किसी डॉक्टर के यहां हेल्पर के रूप में काम किया है, बिना डिग्री के ये कंपाउंडर काम सीखने के बाद अपनी प्रैक्टिस शुरू कर देते हैं, इनके अलावा डॉक्टर, सरकारी स्वास्थ्य सेवा में कार्यरत के सगे संबंधी भी उनके नाम का इस्तेमाल कर अपनी दुकान खोल लेते हैं। इनमें कुछ ऐसे भी हैं जो डॉक्टर बनने का सपना पूरा ना होने की स्थिति में पारा मेडिकल का छोटा मोटा कोर्स कर लेते हैं और अपनी प्रैक्टिस शुरू कर देते हैं ।
इनके अलावा गावों में दवा की दुकान चलाने वाले लोग भी चिकित्सक का काम कर रहे हैं, सैकड़ो गांवों में आपको ऐसे ही डाक्टर बाबू मिल जाएंगे जो ना सिर्फ रोगियों की सेवा कर रहे हैं बल्कि चिकित्सा व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी बने हुए हैं।
सरकार को भी झोला छाप डॉक्टरों की योग्यता पर भरोसा लेकिन आपदा की इस स्थिति में सरकार नीम हकीम खतरे जान के मुहावरे को भूल गई है और जिला प्रशासन झोलाछाप डॉक्टरों पर कार्यवाही नही करती है ।बैतूल जिले के मुख्य चिकित्सा और स्वास्थ्य अधिकारी के इन झोलाछाप डॉक्टरों पर कार्यवाही नही करना भी कई आशंकाओं को जन्म देता है ।