
पराक्रम के कारक और सत्य के धारक भगवान श्रीपरशुरामजी के प्रक्टोत्सव पर्व पर घरों में हुआ पूजन
पिपरिया- नगर सहित ग्रामीण क्षेत्र में अक्षय तृतीया एवं भगवान श्रीपरशुरामजी का प्रक्टोत्सव पर्व हर्षोल्लास पूर्वक मनाया गया।
इस स्वयंसिद्ध तिथि पर सनातनी बंधुओं सहित ब्राह्मण जनों ने लाकडाउन के चलते भगवान विष्णु के अवतार, पराक्रम के कारक/ पर्याय, सत्य के धारक महावीर- महापराक्रमी भगवान श्रीपरशुरामजी का वेदोक्त विधि से अपने- अपने घरों में पूजन- अर्चन किया ।
इस अवसर पर सभी ने भगवान श्रीपरशुरामजी से विश्व को कोरोना से मुक्त करने हेतु प्रार्थना की।
उक्त जानकारी देते हुए पं. पुष्पेन्द्र भार्गव ने बताया कि- सर्वविदित है कि अक्षय तृतीया स्वयंसिद्धा तिथि है, जिसको लेकर देश में अनेक कथाएं प्रचलित हैं।
इसी पुनीत दिवस पर श्रीहरि विष्णु जी राम जी के रूप में प्रकट हुए और परशु धारण कर परशुराम जी कहलाये।
अत्याचारी उनके नाम से थर-थर कांपते थे ,महान पितृभक्त परशुराम जी के परशु ने कभी किसी दुष्ट को नहीं छोडा।
पूर्वकाल में कन्नौज नामक राज्य में गाधि नामक राजा राज्य करते थे, उनकी सत्यवती नामक अत्यंत रुपवती कन्या थी, उन्होंने अपनी कन्या सत्यवती का विवाह भार्गव नंदन ऋषीक के साथ कर दिया। विवाह पश्चात भृगु जी ने पुत्रवधु को आशीर्वाद देते हुए वरदान मांगने को कहा, तब सत्यवती ने ससुर को प्रसन्न देख अपनी माता के लिये पुत्र की याचना की, सत्यवती की प्रार्थना पर भृगु ऋषि ने उन्हें दो चरु पात्र देते हुए कहा कि जब तुम और तुम्हारी मां ऋतु स्नान कर चुकी हों तब तुम्हारी मां पुत्र की इच्छा को लेकर पीपल का आलिंगन करें और तुम पुत्र की याचना को लेकर गूलर का आलिंगन करना फिर मेरे द्वारा दिए गए इन चरुओं की खीर का सावधानी के साथ अलग- अलग सेवन कर लेना, इधर जब सत्यवती की मां ने देखा कि भृगु जी ने अपनी पुत्रवधू को उत्तम संतान होने का चरु दिया है तो उन्होंने अपनी चरु को पुत्री की चरू से बदल लिया इस प्रकार सत्यवती ने अपनी माता वाले चरू का सेवन कर लिया।
शक्ति से भृगु जी को इस बात का ज्ञान होने पर उन्होंने अपनी पुत्रवधू के पास आकर बतलाया कि हे पुत्री तुम्हारी माता ने तुम्हारे साथ छल करके तुम्हारे चरू की खीर का सेवन कर लिया है इसलिए अब तुम्हारी संतान ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय जैसा आचरण करेगी और तुम्हारी माता की संतान क्षत्रिय होकर भी ब्राह्मण जैसा आचरण करेगी इस पर सत्यवती ने भृगु जी से विनती की कि आप आशीर्वाद दें कि मेरा पुत्र ब्राह्मण का ही आचरण करें भले ही मेरा पौत्र क्षत्रिय जैसा आचरण करे, भृगु ऋषि जी ने प्रसन्न होकर उनकी विनती स्वीकार कर ली और समय आने पर सत्यवती के गर्भ से जमदग्नि का जन्म हुआ।
जमदग्नि अत्यंत तेजस्वी थे बड़े होने पर उनका विवाह प्रसेनजीत की कन्या रेणुका से हुआ, रेणुका के यहां अपनी सास सत्यवती को भृगु ऋषि से मिले वरदान के प्रताप से 5 वें पुत्र के रुप में अखिल विश्व के पीडित समाज को तत्कालीन दुष्ट- अत्याचारियों से बचाने एवं राक्षसवृत्ति का संहार करने के लिये आज के ही दिन श्रीहरि प्रकट हुए आपका नाम राम रखा गया, परशु धारण करने पर परशुराम के नाम से विख्यात हुए। अनेक बार पृथ्वी को अत्याचारियों से मुक्त किया। कामधेनु को लेकर कार्त्तवीर्यार्जुन द्वारा अपने पिता जमदग्नि की हत्या पर उसे मृत्यु दंड देते हुए उसके रक्त से समन्तपंचक क्षेत्र में 5 सरोवर भर दिये थे। अपने पितामह ऋचीक द्वारा समझाने पर समस्त पृथ्वी का राज्य दान कर महेन्द्र पर्वत हेतु प्रस्थान कर गये।
ज्ञातव्य रहे भार्गव नंदन परशुराम जी अजेय और अमर हैं वह आज भी महेन्द्र पर्वत पर तपस्या कर रहे हैं।
पुष्पेंद्र भार्गव ने बताया कि -विश्व हिन्दू परिषद पदाधिकारी गणों सदस्यों ने भी महावीर भगवान श्रीपरशुरामजी का पूजन कर विश्व को कोरोना मुक्त करने हेतु प्रार्थना की।