ॐ जय शिव ओमकारा आरती प्राचीन “उमा-महेश्वर प्रतिमा” में है चरित्रार्थ
11 वीं शताब्दी की है प्राचीन पाषाण प्रतिमा
सोहागपुर // रीतेश साहू // सोहागपुर नगर जिले की सबसे पुरानी तहसील का मुख्यालय रहा है यहां से पचमढ़ी मार्ग नगर के बीच से निकला है यह शहर पलकमति नदी के किनारे बसा है पान,परमल, सुराही एवं शिवभक्त बांणासुर की राजधानी श्रोणितपुर के नाम से थी जो वर्तमान में सोहागपुर हो गई।आज भी खुदाई में प्राचीन मूर्तियां तथा पुरातत्व की महत्व के धरोहर मिलती रहती है यह उमा-महेश्वर की अलिंगनबद्ध प्रतिमा जो एक ही पत्थर पर तरासी गई है खेत में हल चलाने के दौरान मिली थी। यह मूर्ति 11वीं सताब्दी की बताई जाती है इस मूर्ति पर शिव पार्वती का सम्पूर्ण परिवार विराजमान हैं इसके दर्शन मात्र से संपूर्ण मनोकामना पूर्ण होती हैं। यूं तो पूरे वर्ष इस अद्भुत प्रतिमा के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का ताँता लगा रहता है परंतु महाशिवरात्रि एवं श्रावण मास के पावन अवसर पर इस मंदिर में लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शनों के लिए पहुंचते हैं।
महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर मंदिर प्रांगण में तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है जिसके चलते शिव पार्वती मंदिर में शिवरात्रि के दिन बहुत भीड़ होती है और हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने के लिए मंदिर पहुंचते हैं। पिछले कई वर्षों से प्रत्येक महाशिवरात्रि पर 3 दिन का मेला का लगता है। इसमें लेकर आयोजन आज महाशिवरात्रि के दिन से शुरू होगा जो की तीन दिवस तक जारी रहेगा। मेले में मुख्य रूप से लोहे के बर्तनों की खरीददारी की जाती है।
पाषाण प्रतिमा का इतिहास – इस अलिंगनबद्ध प्राचीन, पाषाण शिव पार्वती की प्रतिमा जिनके साथ उनका संपूर्ण परिवार बिद्धमान है यह प्रतिमा इस बात की प्रत्यक्ष घोतक व प्रमाण है कि शंकर जी की आरती “जय शिव ओमकारा” का संपूर्ण वर्णन इस प्रतिमा के अंदर है इस प्रतिमा के साथ शिवजी की आरती बनी है यह कहना मुश्किल है कि शिवजी की आरती पहले लिखी गई या इस मूर्ति का निर्माण पहले हुआ। आरती को सार्थक सिद्ध करने के लिए यह चतुर्भुजी शिव पार्वती प्रतिमा खेत में प्रकट हुई है।
मूर्ति की स्थापना एवं रहस्य – विक्रम संवत् 2018 श्रावण वदी चौदस दिन गुरूवार दिनांक 10 अगस्त 1961 को नगर के वरिष्ट अधिवक्ता प्रेम शंकर तिवारी के खेत में हल चलाते समय उनके हरवाए मनसाराम यादव को यह पुरातत्वीय महत्व की अनमोल, उत्कृष्ट कलात्मक वस्तुशास्त्री, चतुर्भुजी, अनुठी, अद्भुद्ध संपूर्ण बनी हुई सीधे आकार में प्राप्त हुई इसकी स्थापना के लिए प्रेम शंकर तिवारी ने अपनी जमीन दान दी तत्कालीन रेलवे ठेकेदार गोपीलाल ठाकुर द्वारा सन् 1962 भव्य मंदिर बनाकर तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष स्वर्गीय पंडित कुंजीलाल दुबे द्वारा इस प्राचीन पाषाण प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा कराई गई थी एवं प्रबंधन हेतु शिवालय मंदिर समिति का गठन हुआ
प्राचीन शिव पार्वती प्रतिमा की विशेषता – शिव पार्वती की चतुर्भुजी प्रतिमा की विशेषता यह है कि यह एक ही पत्थर पर निर्मित है इसकेक मध्य भाग्य में शिव एवं पार्वती की अलिंगबद्ध विराजमान है उपर बीचोंबीच अर्धनारीश्वर रूप दिखता है तथा उपर की ओर दाए वाए छोर पर ब्रम्हा और बिष्णु विराजमान हैं नीचे दोनों कोने पर एक तरफ गणेश एवं दूसरी तरफ कार्तिक जी विराजमानन हैं भोले गौरा चरणों के समीप नंदी वाहन हैं एवं देवी वाहन सिंह विराजे हैं इन दोनों के बीच में शिव भक्त भस्मासुर सिर पर हाथ रखे बैठा है प्रतिमा के पीछे आभामंण्डल का चक्र है जिसके आरपार देखा जा सकता है प्रतिमा के पीछे ही भगवान सूर्य देव पूर्ण आकार में विराजमान हैं, लक्ष्मी,सरस्वती, रिद्धी, सिद्धी, चूहा, मयूर, वृष के अलावा त्रिशूल, नरियल एवं डमरू स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं सोहागपुर का प्रसिद्ध पान माता पार्वती के हाथों में विराजमान हैं इस प्रतिमा की विशेषता यह है कि शीर्ष से लेकर निम्न तक देवी देवताओं तथा गणों का समूह मंडल स्थापित हैं एवं इस प्रतिमा पर शिवजी एवं पार्वतीजी द्वारा पहने गए आभूषण भी मूर्तिकला का एक अनूपम उदाहरण है इसके साथ ही पार्वतीजी के एक हाथ में धतूरा का फल एवं पान का बीड़ा इस बात का घोतक है पूर्व में सोहागपुर में पान की खेती होती थी पार्वतीजी के हाथ में जो डमरू दिखता है वह जानकारों के मुताबित आईना (दर्पण) है।
खुदाई के दौरान मिला 11 वीं शताब्दी का शिलालेख – मंदिर के पास ही 2010 में खुदाई के दौरान एक शिलालेख मिला था। जो वर्तमान में तिवारी परिवार के घर में रखा हुआ है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण परियोजना भोपाल के सहायक अधीक्षण पुरात्वतविद डॉ राजेश मेहर ने बताया कि इस शिलालेख में परमार राजाओं के समय का वर्णन है जिसमें परमार राजाओं की वंशावली का वर्णन किया गया है इस शिलालेख में 56 लाइन है जो की देवनागरिक लिपि एवं संस्कृत में लिखा है शिलालेख की 18वीं लाइन में रेवापुर का वर्णन है वही अगली लाइन में नर्दापुर का उल्लेख भी है जिससे यह स्पष्ट होता है कि परमार शासन काल में होशंगाबाद का नाम नर्मदापुर रहा होगा वही सोहागपुर के नजदीक ग्राम रेवाबनखेड़ी और रेवामोहारी भी स्थित है शिलालेख में रेवापुर का वर्णन मिलता है शायद इन्हीं 2 ग्रामों में से किसी एक ग्राम का नाम रेवापुर रहा होगा। शिलालेख की 47 भी लाइन में उधमुख मठ के निर्माण के बारे में उल्लेख किया गया है इस मठ में शांतिजिनेश्वरा की मूर्ति रखी गई है जो की जैन धर्म का मठ है। शिलालेख के अंत में सवंत 1244 अंकित है जिससे यह पता चलता है कि यह शिलालेख 1244 संवत के दौरान लिखा गया होगा 1244 संवत सन के अनुसार 1186 सन रहा होगा। डॉ राजेश कुमार मेहर ने यह भी बताया कि परमार राजा भगवान शिव के परम भक्त हुआ करते थे और वह जैन धर्म को भी मानते थे। यह क्षेत्र परमार शासन काल में हिंदू एवं जैन धर्म का विशेष स्थान रहा होगा। मातापुरा वार्ड निवासी प्रांजल तिवारी ने बताया कि यह शिलालेख उनके घर के मंदिर में सुरक्षित रखा हुआ है।