लौकिक एवं पारलौकिक जो करे अंत, वही है संत – डॉ आचार्य बृजेश दीक्षित
पिपरिया । नगर में चल रहे श्री राम यज्ञ मानस सम्मेलन एवं नवान्ह पारायण , प्रवचन की श्रंखला में, आज जानी-मानी विदुषी सुश्री आस्था दुबे, ने अपने चिर परिचित अंदाज में शिव विवाह एवं नारद मोह की कथा को केंद्र में रखते हुए अभिमान पर विस्तृत चर्चा की। एवं अभिमान का ना होना ही श्रेष्ठ बताया । आपने शिव विवाह पार्वती जी की भक्ति एवं तपस्या को लेकर नारी शक्ति को जागृत करने पर जोर दिया। आपने अपने सारगर्भित संबोधन में महिलाओं के मन की बात कही। तत्पश्चात मंच पर पधारे जाने-माने ख्याति लब्ध डॉक्टर आचार बृजेश जी दीक्षित आप मीमांसा के विषय के प्रमुख जानकार है। तथा विषय की मीमांसा करते हैं। आज आपने संत की परिभाषा पर प्रकाश डालते हुए कहा, की जो लौकिक एवं अलौकिक समस्याओं का अंत करता है वही संत होता है। इस विषय पर आपने विवेक चूड़ामणि से लेकर वेद, महाभारत तथा वाल्मिक एवं तुलसी रामायण तथा अन्य ग्रंथों, उपनिषदों का उल्लेख करते हुए बहुत ही सारस्वत प्रवचन किया। आपने अपने प्रवचन में नवधा भक्ति को बतलाते हुए मां पार्वती जी में कैसी नवधा भक्ति थी और भक्ति क्या होती है इस पर प्रकाश डालते प्रमुख ग्रंथों से विधिवत प्रतिपादित किया । आपने बड़े ही मनमोहक ढंग से सिद्ध किया कि विश्वास ही शिव है और श्रद्धा ही पार्वती तथा राम ज्ञान है एवं सीता ही भक्ति है ।
अयोध्या धाम से पधारे हुए वैष्णव परंपरा के युवा उद्बोधक परम पूज्य पंडित श्री मधुसूदन जी शास्त्री, ने बड़े मनमोहक ढंग से रामचरितमानस के संदर्भों का वर्णन करते हुए कहा। कि भगवान राम ने जिस पत्थर को छोड़ा वह समुद्र में डूब गया तब हनुमान जी, ने कहा प्रभु जिसे आप पकड़े रहेंगे उसे संसार में कोई नहीं डुबा सकता ।और जिसे आप छोड़ देंगे उसे कोई नहीं बचा सकता। उन्होंने तीन देवों में ब्रह्मा विष्णु और महेश में ब्रह्मा एवं विष्णु को देव एवं भगवान शंकर को महादेव के रूप में बताया। उन्होंने कहा भगवान भोलेनाथ बड़े ही भोले हैं तथा समुद्र मंथन के समय निकले हुए विष को उन्होंने संसार के कल्याण के लिए अपने कंठ में धारण किया अर्थात विष का पान किया। जो संसार की रक्षा के लिए और संसार के कल्याण के लिए अपने जीवन को भी दाव पर लगा सकता है वही महादेव हो सकता है ।
परमपूज्य श्रीमती यशुमती देवी ने अपने वक्तव्य में रामचरितमानस को सारे वेदों का सार बताया। और कहा कि सारे वेद रामायण के रूप में हमारे पास हैं। तुलसीदास जी ने प्रमुख रूप से पांच प्रकार की लीलाओं का वर्णन किया। शिव पार्वती विवाह संवाद के माध्यम से उन्होंने रामचरितमानस के शुभारंभ की बात कही ।अपने प्रवचन में उन्होंने नारी के गौरव गरिमा को सुंदर ढंग से वर्णन किया। उन्होंने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस को बाल लीला विवाह लीला,वन लीला,रण लीला और राज लील इन पांच सोपानों में बांटकर सुंदर चित्रण किया है। उन्होंने भगवान शिव और पार्वती के विवाह का तथा शिव बारात का बड़ा सुंदर वर्णन किया।
परम पूज्य आचार्य श्री राघवकिंकर जी (आलोक जी मिश्र) मानस आलोक चित्रकूट से पधारे हुए, उन्होंने बड़े ही प्रतीकात्मक और गूढ़ रहस्य उजागर करते हुए बताया ।शिव विवाह के समय शिव जी का श्रंगार मस्तक से प्रारंभ हुआ। और राम विवाह में राम जी का श्रृंगार चरणों से प्रारंभ किया गया । इसके पीछे प्रभु के रूप में राम और सेवक के रूप में शिवजी की मर्यादा और धर्म को सुंदर ढंग वर्णन किया। विवाह के उपरांत माता पार्वती जी ने भगवान श्रीराम की लोक कल्याण करने वाली कथा भगवान शिव से पूछी। और अनुरोध किया कि भगवान राम की संसार का कल्याण करने वाली कथा मुझे सुनाने की कृपा करें ।इसके लिए पार्वती जी ने कुछ प्रश्न किए जिनमें निर्गुण निराकार ब्रह्म सगुण साकार सगुण साकार होकर कैसे आए। भगवान की अवतार की कथा क्या है। बाल रूप की कथा, विवाह की कथा, वनवास की कथा और वन में रहकर किए गए अद्भुत कार्यों का वर्णन माता पार्वती ने भगवान शिव से प्रश्नों के रूप में पूछा पूछा कहा कि भगवान का राज्याभिषेक और प्रजा के साथ में अपने धाम को कैसे गए। इस प्रकार कथा में पधारे हुए सभी विद्वान मनीषियों ने श्रीरामचरितमानस के प्रसंगों का बड़े ही भावनात्मक रूप से वर्णन किया।
सभी श्रोताओं से कल अपराह्न में 2:00 बजे से प्रवचन श्रवण करने हेतु तथा यज्ञ दर्शन हेतु अधिक से अधिक संख्या में पधारने का आग्रह किया जाता है।