सरस्वती पूजा के निहितार्थ ,तब और अब

गोपाल राठी की कलम से

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स्कूल और स्कूल के बाहर होने वाले साहित्यिक सांस्कृतिक कार्यक्रम में सरस्वती जी की पूजा और वंदना अब एक परिपाटी जैसी बन गई है । एकलव्य पुस्तकालय में होने वाली साहित्यिक और गैर साहित्यिक गोष्ठियों में हम इस परिपाटी का पालन नहीं करते थे । एक बार एक मास्साब जो अपने आपको साहित्यकार मानते थे ने आते ही पूछा कि क्या आपके यहाँ सरस्वती जी की फ़ोटो नहीं है ? वे अपने साथ अगरबत्ती और फूल माला लाये थे । हमने पूछा क्या काम है ? वे बोले गोष्ठी की शुरुआत सरस्वती जी पूजा और वंदना से होती है । मास्साब ने सरस्वती जी की वंदना लिखी थी वे इस अवसर पर उसे सुनाना चाहते थे । मास्साब की खासियत यह थी कि उन्होंने सभी लोकप्रिय फिल्मी गानों की तर्ज पर भगवान के भजन आरती लिखे थे और वे कवि गोष्ठियों में इन्हें बड़े तन्मय होकर तरन्नुम में सुनाते थे । नगर में उनके प्रशंसको का एक बहुत बड़ा वर्ग है जो उन्हें नीरज जैसा गीतकार और दिनकर जैसा कवि मानता है । वे कविता के रूप में शादी ब्याह के अभिनंदन पत्र भी लिखते हैं इस कारण समाज मे उनकी अच्छी पूछ परख है ।

 

हमने मास्साब से विनम्रता पूर्वक निवेदन किया कि यह इतना बड़ा पुस्तकालय है जहाँ सैकड़ो किताबें मौजूद है । हर किताब सरस्वती जी का साक्षात स्वरूप है इसलिए सरस्वती जी की फ़ोटो की कोई ज़रूरत नहीं है । क्योकि बाज़ार में बिकने वाली फ़ोटो एक प्रतीकात्मक आकृति है , जिसे हमारे ग्रन्थों में आये वर्णन के अनुरूप चित्रकारों ने बनाया है । हमने कहा कि जिस तरह नकद रुपया पैसा लक्ष्मी जी का साकार स्वरूप है । अगर लक्ष्मी जी की फ़ोटो न हो तो रुपये पैसे सामने रखकर उनकी पूजा की जा सकती है । हमारी बात कुछ लोगों को समझ मे आई लेकिन अधिकांश को समझ मे ही नहीं आई क्योकि वे एक परम्परा से बंधे हुए थे । उससे इतर सोचने और विचार करने का उन्हें अभ्यास ही नहीं था । हमने फिर कहा कि आपकीं आस्था है तो आप सरस्वती जी की वंदना ज़रूर प्रस्तुत करें लेकिन पुस्तकालय की इन किताबों को साक्षी मानकर । सरस्वती जी को विद्या और कला की देवी माना गया है अतः उनके इसी स्वरूप का ध्यान रखना ज़रूरी है । हर किताब और हर साज सरस्वती ही है ।

 

सामने तो किसी ने हमारी बात का कोई उत्तर नहीं दिया लेकिन पीठ पीछे कुछ लोग यह कहते पाए गए कि – ” जो गोपाल राठी तो समाजवादी है , जे सोशलिस्ट कम्युनिस्ट भगवान को नहीं मानते । ‘ उनका यह दुष्प्रचार ज़्यादा आगे नहीं बढ़ पाया क्योकि गोपाल राठी की नगर के अनेकों धार्मिक कार्यक्रमो में भागीदारी रही है ।

 

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प्रस्तुत चित्र वाद्य यंत्र वीणा का । सरस्वती जी की मूर्ति या चित्र में वे अपने हाथों में वीणा धारण करती है । उनकी यह छवि हम सबके दिलों दिमाग मे अंकित है । इसलिए उन्हें वीणावादिनी कहा गया है । वीणा भारत के लोकप्रिय वाद्ययंत्र में से एक है जिसका प्रयोग प्राय: शास्त्रीय संगीत में किया जाता है। वीणा सुर ध्वनिओं के लिये भारतीय संगीत में प्रयुक्त सबसे प्राचीन वाद्ययंत्र है। समय के साथ इसके कई प्रकार विकसित हुए हैं । किन्तु इसका प्राचीनतम रूप एक-तन्त्री वीणा है।

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