महाभारत का चक्रव्यूह – शोधपरक व्याख्या, चक्रव्यूह : टूटता कैसे होगा ?

 

सबसे पहली बात कि ये कितना बड़ा होगा इसका अंदाजा लगाना थोड़ा सा मुश्किल है | महाभारत का युद्ध अपने दौर का सबसे बड़ा युद्ध था और गिनती के लिए उस युग में अक्षौहणी इस्तेमाल होती थी |

एक अक्षौहणी का मतलब होता था 21,870 रथ,

21870 हाथी,

65610 घुड़सवार और 109350 पैदल सैनिक |

 

मान्यताओं के हिसाब से करीब 18-20 अक्षौहणी सेना इस युद्ध में मारी गई थी | जिस कुरुक्षेत्र में ये लड़ा गया था, वो लगभग 48 x 128 किलोमीटर का है | यानि अब आप अंदाजा लगा सकते हैं की ये कितना सघन युद्ध रहा होगा |

 

इसलिए अंदाजा लगाया जा सकता है कि चक्रव्यूह की रचना के लिए कितने ढेर सारे लोग मौजूद रहे होंगे । इसकी रचना द्रोण ने की थी, जो कि अपने समय में कौरव पक्ष की और से लड़ रहे सबसे चतुर रणनीतिज्ञ थे |

इस चक्रव्यूह की सहायता से युद्धिष्ठिर को पकड़ा जाना था, जो कि पांडवों के प्रमुख थे |

ये युद्ध में जीत का इंतजाम था |

इस व्यूह को एक घुमते हुए चक्के की शक्ल में बनाया जाता था (इसलिए नाम में चक्र है), और इसे सुलझाना पहेली सुलझाने जैसा होगा (इसलिए व्यूह) |

 

व्यूह लगातार घूमता हुआ आगे बढ़ता था, कुछ कुछ स्क्रू के घूमने जैसा ।

इसका नाम पद्मव्युह भी बताया गया है | जैसे जैसे अन्दर के स्तर बढ़ते जाते थे वैसे वैसे अंदर पहुँचते योद्धाओं की क्षमता भी बढ़ती जाती थी । जैसा आज के कंप्यूटर गेम्स में हर लेवल पर कठिनाई बढ़ती जाती है | पहला द्वार आसान होगा और सातवां सबसे कठिन |

 

याद रखिये कि ये गेम्स के मेज़ (maze) की तरह ठहरा हुआ नहीं होगा | ये खुद ही घूमता हुआ योद्धा को अपने अन्दर समेट लेगा | साथ ही इस व्यूह में योद्धा लगातार लड़ रहा है | लड़ते हुए वो तो लगातार थकेगा, लेकिन जैसे जैसे वो अन्दर जाता जायेगा, जिन योद्धाओं से उसका सामना होगा वो थके हुए नहीं होंगे, ऊपर से वो पहले वाले योद्धाओं से ज्यादा शक्तिशाली, ज्यादा अभ्यस्त भी होंगे | शारीरिक और मानसिक रूप से थके हुए योद्धा के लिए एक बार अन्दर फंस जाने पर जीतना और बाहर आना दोनों मुश्किल होता जाएगा |

 

किसी योद्धा के मरने पर चक्रव्यूह में, उसके बगल वाला योद्धा उसका स्थान लेगा, यानि अन्दर से एक बेहतर योद्धा निकल कर सामने आ गया | इस तरह व्यूह कभी बदला नहीं उसका क्लिष्ट स्वरुप युद्ध के शुरू होने जैसा ही है |

 

अब इस व्यूह में अभिमन्यु वाले हिस्से पर आते हैं | इस व्यूह के आकार को ऊपर से देखने पर दो चीज़ें नजर आती हैं : –

 

नए योद्धा को लग सकता है कि सबसे आसान तरीका इसके खुले हुए वाले हिस्से से अन्दर जाना सबसे आसान होगा | इस तरीके में तीन कतारों को पार करने पर आप व्यूह के बीच में होंगे | लेकिन योद्धा भूल गया कि व्यूह गोल गोल घूम रहा है | एक तो उसके वापिस पीछे निकलने का रास्ता बंद हो गया है | दूसरा ये कि वो व्यूह के घूम जाने के कारण अब चौथे स्तर के योद्धाओं के सामने खड़ा है | इसके अलावा बाहर की तरफ जो योद्धाओं का घनत्व है वो अन्दर की तरफ से कम है | घनत्व को बराबर या कम करने के लिए ये जरूरी होगा कि बाहर की तरफ खड़े ज्यादा से ज्यादा योद्धाओं को मारा जाए | इससे व्यूह को घुमाते-चलाते रखने के लिए ज्यादा से ज्यादा योद्धाओं को अन्दर से बाहर धकेलना होगा |

ये अन्दर की तरफ योद्धाओं का घनत्व कम कर देगा | अब इस पर आते हैं कि अभिमन्यु ने इसके अन्दर जाने के लिए क्या तरीका इस्तेमाल किया होगा | साथ ही ये भी सोचते हैं कि किन संभावित तरीकों से वो इस व्यूह से बचकर निकल सकता था |

 

*व्यूह में प्रवेश : -*

 

व्यूह के योद्धाओं की दीवार तोड़ कर अन्दर जाने के लिए कोई भी सामने वाले योद्धा को मार कर ठीक सामने की जगह खाली करने की कोशिश करेगा | लेकिन इसमें होगा क्या कि फ़ौरन मारे गए योद्धा की दाहिनी तरफ खड़ा सैनिक उसकी जगह ले लेगा | इस तरह दीवार तो टूटेगी ही नहीं | इस दीवार को तोड़ने के लिए फिर अभिमन्यु ने अपने ठीक सामने वाले योद्धा पर प्रहार करने के बदले उसके दाहिनी और बायीं तरफ के योद्धा को मार गिराया होगा | इससे उसके ठीक सामने वाला योद्धा जब अपनी दाहिनी तरफ, खाली जगह भरने बढ़ेगा और उसकी दाहिनी तरफ वाला योद्धा पहले ही मारा जा चुका है तो बहुत थोड़ी सी देर के लिए उसके ठीक सामने की जगह खाली होगी | वहां से अन्दर घुसा जा सकता है | बहुत थोड़ी सी देर के लिए मिली इस खाली जगह से अभिमन्यु जैसे ही अन्दर घुसा होगा, वैसे ही ये जगह फिर से बंद हो गई होगी | पीछे के योद्धा ये तरकीब नहीं समझने के कारण पीछे फंसे योद्धा बाहर ही रह गए | इस तरकीब का इस्तेमाल कर के ये माना जा सकता है कि अभिमन्यु शुरूआती द्वार तो पार कर गया होगा लेकिन अन्दर की तरफ योद्धा और पास पास खड़े होंगे | दो योद्धाओं को मारकर बनने वाली जगह बहुत ही कम देर के लिए बनती है और वहां से अन्दर घुसना लगभग नामुमकिन हो जायेगा | उसके अलावा लगातार गोल गोल घूमती चीज़ में एकाग्रता का क्या होगा ये भी सोचा जा सकता है ।

शुरुआत में यही सोचा गया था कि अभिमन्यु व्यूह को तोड़ेगा और उसके साथ ही अन्य योद्धा भी उसके साथ साथ चक्रव्यूह में अन्दर घुस जायेंगे | लेकिन जैसे ही अभिमन्यु घुसा और व्यूह फिर से बदला, पीछे के योद्धा, भीम, सात्यकी, नकुल-सहदेव कोई अन्दर घुस ही नहीं पाया |

जैसा कि महाभारत में द्रोणाचार्य भी कहते हैं, लगभग एक ही साथ दो योद्धाओं को मार गिराने के लिए बहुत कुशल धनुर्धर चाहिए | युद्ध में शामिल योद्धाओं में अभिमन्यु के स्तर के धनुर्धर दो चार ही थे | यानि थोड़े ही समय में अभिमन्यु, चक्रव्यूह के और अन्दर घुसता तो चला गया, लेकिन अकेला, नितांत अकेला |

 

*चक्रव्यूह तोड़ना : -*

 

जैसे जैसे अभिमन्यु बीच की तरफ पहुँचते गए वैसे वैसे योद्धाओं का घनत्व और योद्धाओं का कौशल भी बढ़ता गया | वो जहाँ युद्ध और व्यूहरचना तोड़ने के कारण मानसिक-शारीरिक रूप से थके हुए थे, कौरव पक्ष के योद्धा तरोताजा रहे होंगे | शायद जिस तरकीब का इस्तेमाल करके अभिमन्यु अन्दर घुसे थे, शायद, उसी तरीके से वो बाहर निकल कर अपने पक्ष के और योद्धाओं को लेकर अन्दर आने का दोबारा प्रयास कर सकते थे | लेकिन शायद, किन्तु, परन्तु वाला, हेतुहेतुमद भूत का ऐसा होता तो कैसा होता वाला ये मामला है | लेकिन ऐसा कुछ भी हुआ नहीं था | अभिमन्यु ने तोड़ने का प्रयास अकेले ही जारी रखा | वो और ज्यादा योद्धाओं का सामना करते रहे | कितनी देर तक वो ऐसा कर पाए होंगे, कितनी देर में थक गए होंगे ये सोचना मुश्किल है | और चक्रव्यूह का अंत इसी तरह हुआ था | अन्दर युद्ध करते हुए अभिमन्यु सात योद्धाओं से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए |

 

*चक्रव्यूह का घूमना :-*

 

जिन्होंने सेना जैसी परेड की कभी प्रैक्टिस नहीं की हो, उन्हें चक्रव्यूह का घूमना थोडा कम विश्वसनीय लगेगा | इसके लिए शतरंज के घोड़े की चाल याद कीजिये | ढाई घर, यानि एक कदम आगे और एक कदम दाहिने, या बायीं तरफ़ | और अब चक्रव्यूह की संरचना को दोबारा देखिये | ये सिर्फ एक गोला नहीं है, ये एक कतार में खड़े योद्धाओं को कतार को गोल सजाने की वजह से बना हुआ चक्र है | इसे घुमाना आसान है | अब जब आप इसकी कल्पना करते हैं तो आपको समझ में आ जायेगा कि सिर्फ दो योद्धाओं के स्थान परिवर्तन से ये पूरा घूम सकता है | जो योद्धा नीले रंग की लकीर के साथ है वो अपनी बायीं तरफ एक कदम बढ़ाकर एक प्रतिक्रिया शुरू कर देगा | उसकी दाहिनी तरफ वाला जैसे ही खाली जगह को भरने के लिए आगे बढ़ेगा खाली हुई जगह भी भरेगी और व्यूहरचना एक फुट आगे सरक गई होगी | अन्दर जहाँ से लाल वाला हिस्सा शुरू हो रहा है वहां से शुरू करने वाला योद्धा भी जब यही करेगा तो खाली पड़ी जगह भरने के लिए आगे बढ़ेगा तो खुला हिस्सा फिर से बंद होगा | जब आप इस की कल्पना कर के सिपाहियों का चलना सोचेंगे तो आपको समझ आ जायेगा की शतरंज के घोड़े जैसा ढाई घर, यानि तीसरा कदम पड़ते ही व्यूह कैसे बदल गया होगा | लगातार कदमताल पर चल रहे सैनिकों में इस व्यूह के अन्दर लाल घेरा कहाँ शुरू हो रहा है और नीला कहाँ ख़त्म होता है ये पहचानना नामुमकिन होगा | ये ऊपर से देखने पर थोड़ा सा आसान है, जमीन पर इसे पहचानना संभव नहीं होगा | अब ध्यान रखिये कि इसे लिखने वाला कोई युद्धविशारद नहीं है | द्रोण और अर्जुन जैसों के स्तर का तो कहीं से भी नहीं है |

ये सिर्फ एक प्रयास है चक्रव्यूह को आज के दौर में समझने का | व्याख्याएं और भी हो सकती हैं | इस से जीतने के तरीकों पर सहमती और असहमति भी हो सकती है | लेकिन मेरी समझ से ये चक्रव्यूह बनाने का सबसे आसान तरीका होगा | सिर्फ दो कतार में खड़े योद्धाओं से बनी पहेलीनुमा व्यूहरचना चक्रव्‍यूह – एक पथीय युद्धविधि चक्रव्‍यूह ।

जी, युद्ध का वही व्‍यूह जिसकी रचना महाभारत के युद्ध में कुरुक्षेत्र में हुई। अर्जुन पुत्र अभिमन्‍यु जिसमें दाख्लि हुआ किंतु वह निकलने का रास्‍ता नहीं जानता था। उसके संगी परिजनों ने आश्‍वासन दिया था कि वे उसे वहां से निकाल देंगे, मगर वह इस व्‍यूह में खेल रहा। एक वीरवर की देखते ही देखते मौत हो गई…। अभिमन्‍यु जब गर्भ में था, उसने पिता अर्जुन के मुंह से इस व्‍यूह की रचना के संबंध में जान लिया था। मगर, सुनते सुनते ही मां सुभद्रा को नींद आ गई थी और वह पूरी बात नहीं सुन पाया। बस, इसी कारण वह पूरा व्‍यूह नहीं जान पाया अर्थात उससे निकलने का रास्‍ता नहीं जान पाया।

इस कथा में एक अनोखी बात ये है कि रणांगन में प्रवेश करने का मार्ग यदि एक ही है तो वह हमेशा ज्ञात रहना चाहिए और अपना बचाव करते हुए सुरक्षित निकलने का प्रयास करना चाहिए। चक्रव्‍यूह इसी का नाम है। यह पूरा ही मार्ग पर गमन करने का खेल है। बिल्‍कुल उस हाथखिलौने की तरह का जिसमें छर्रे होते हैं और उनके बीच में पहुंचाने का प्रयास करना होता है मगर छर्रे को बाहर निकालना कितना मुश्किल होता है। पहिये के आकार का यह व्‍यूह बनता था और इसमें प्रवेश का एक ही मार्ग होता था, घुसना और निकलना एक ही रास्‍ते से संभव होता था। कौटिल्‍य के अर्थशास्‍त्र में व्‍यूहों का वर्णन आया है। महाभारत में भी इसका जिक्र है ही, धनुर्वेद के संबंध में जिन ग्रंथों में वर्णन हैं, यथा- शांर्गधर पद्धति, शिवधनुर्वेद, वासिष्‍ठी धनुर्वेद, अग्निपुराण, विष्‍णुधर्मोत्‍तरीय धनुर्वेद आदि में भी इस व्‍यूह की न्‍यूनाधिक जानकारी मिलती है। शुक्रनीति, आकाशभैरवकल्‍प, वीरमित्रोदय आदि में भी संदर्भ मिल जाएंगे। इसमें पहले 16 हाथियों को गोलाई में स्थित किया जाता था। पीछे रथ, फिर भाला लिए हुए सैनिक होते थे। उनके बाहर धनुर्धर और फिर खडग, खेटकधारी, तदोपरांत तीन पंक्ति बनाकर अश्‍वारोही रहते थे –

गजशोडशकं मध्‍ये वृत्‍ताकारेण कल्‍पयेत़….।

 

कामंदक के नीतिसार में भी ऐसा वर्णन मिलता है। स्‍वर के संबंध में नरपति जयचर्या स्‍वरोदयादि जितने ग्रंथ है, उनमें भी व्‍यूहों के संबंध में वर्णन में इसका संदर्भ मिल जाता है।

”द आर्ट ऑफ वार इन ऐशियण्‍ट इंडिया” में पीसी चक्रवर्ती ने Wheel array से इसका परिचय दिया है। (पेज 115) व्‍यूहों की ऐसी रचनाओं के संदर्भ भारत ही नहीं, बाहर इटली में भी मिले हैं। इटली की अध्‍येता सुझान्‍ने फेर्रारी ने एेसा एक चित्र जुटाया भी है। तंत्र प्रयोगों में गर्भ कष्‍ट निवारण के लिए चक्रव्‍यूह बनाकर दिखाए जाने की परंपरा रही है जिसमें अर्जुन के दस नाम भी लिखे जाते रहे हैं। कई जगह स्‍थापत्‍य रचनाओं में भी चक्रव्‍यूह का उत्‍कीर्णन मिलता है।

 

प्रो. अमित कुमार शर्मा ,ज्योतिर्विद , हस्तरेखा विशेषज्ञ सहायक प्राध्यापक(भौतिक विज्ञान)भोपाल मोबाइल न.  9424546172

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